मुझे सुपरहीरोज वाली फिल्में काफी पसंद है. बहुत से लोगों को होती है. किसी को दुनिया बचाते देख कभी न कभी तो मन करता है कि काश मैं भी इन सुपरहीरोज के तरह दुनिया बचा सकूं. फिर सोचता हूँ क्या दुनिया को बचाने की ज़रूरत भी है? जवाब तो नहीं पता लेकिन ये ख्याल मन में आता तो जरूर है.
जब मैं फ्री रहता हूँ तब ज्यादातर समय कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठा रहता हूँ. कभी कुछ लिखता हूँ तो कभी पढ़ता हूँ. मगर इन दोनों के बीच जब मैं खाली स्क्रीन को घूरता हूँ तो लगता है दुनिया से पहले मुझे खुद को बचाने की ज़रूरत है. कभी - कभी अकेलापन खाने लगता है. कर्सर जब ब्लिंक करता है तो मन में ख्याल या तो ऊफान पर होते है या बस खालीपन होता है. दोनों ही सही नहीं. कहीं बीच का रास्ता ढूँढना सबसे मुश्किल है. मन में कभी सौ बातें घूमती रहती है तो कभी मानो ख्यालों का अकाल पर जाता है.
कई दिनों से एक किताब पढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ. लेकिन और सब कामों में इतना उलझा रहता हूँ कि किताब पढ़ने का समय ही नहीं मिलता. ख़ैर, ये झूठ ही है. समय तो मिलता है लेकिन उस वक्त लगता है थोड़ा सिलेबस का पढ़ लूं तो बेहतर होगा. कभी न कभी दुनिया को कोई न कोई बचा लेगा. मैं तो बस खुद में ही उलझा रह जाऊंगा.
शायद यही कारण है आजतक कोई दुनिया न बचा सका. लोगों को खुद से फुर्सत हो तब तो.
~Praphull
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