I am stuck between life and words so I try to live here.

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ट्रेन और यात्रा~

ट्रेन में बैठने के बाद हम जैसे एक दूसरी दुनिया में पहुँच जाते है. एक दुनिया जो ट्रेन के अंदर है और एक जो बाहर. जब मैं बैठा हुआ था तब मेरे दिमाग में बस यही ख्याल आ रहे थे कि अगर मुझसे किसी एक दुनिया को चुनने को कहा जाए तो मैं कोनसा चुनूंगा. संभवतः ट्रेन के अंदर की दुनिया.

ठंड में खिड़की न खुलने का दुःख भी था मगर मैंने खुदको ट्रेन की अंदर की दुनिया में इतना व्यस्त कर लिया कि बाहर देखने का मन नहीं हुआ. जब स्टेशन पर ट्रेन रुकती थी तो अचानक से बहुत लोग बदल जाते थे नए लोगों से. भीड़ बढ़ती जा रही थी मगर मैं अपने जगह पर चुपचाप बैठा रहा कभी एकदम आराम से तो कभी थोड़ा कष्ट में. ट्रेन मुझे ज़िंदगी जैसी लगती है.


मेरे पास जो पानी की बोतल थी वो पूरी भरी हुई थी. मैंने जैसे ही पानी पीने के लिए ढक्कन खोला थोड़ा पानी सामने वाले शख्स के जूतों पर गिर गया. मुझे लगा शायद मुझे अब डांट पड़ेगी. लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा. कई बार हम बेकार में डरते है. वो डर जो कभी सच भी नहीं होगा उनकी चिंता हमें पूरे दिन डराती रहती है. लेकिन हर बार जीवन उस शख्स जितना शांत भी नहीं होता. कई बच्चे बस हल्ला कर रहे थे जिससे मुझे फ्रस्ट्रेशन भी हो रहा था मगर क्या करता. ट्रेन में हमारे बिहार के मुख्यमंत्री जी की बातें भी हो रही थी. खैर वो एक अलग कहानी है. ट्रेन से उतरते ही हमने नाश्ता किया और फिर चले गए जिस काम से आए थे. एग्जाम देने. एग्जाम की बात न करू तो ही बेहतर. सेंटर पर बैठे – बैठे मन ऊबने के बाद अंदर जाने मिला. सोचा जाने से पहले कॉफी पी लेता हूँ मगर आधा कॉफी बनते ही बिजली चली गई. फिर अंदर में डेढ़ घंटे बैठने के बाद एग्जाम शुरू और फिर 6 बजे शाम मैं सेंटर बाहर निकला. फिर ट्रेन के आने में काफी देरी थी तो हमने बस से आने का सोचा.


थोड़ी देर बाद बस मिली और बस एकदम भीड़ – भाड़ वाली थी. मेरे आगे वाली सीट पर एक महिला अपने बच्ची को सुलाने का प्रयास कर रही थी और मैं एग्जाम को भूलने को. दोनों मुश्किल थे. फिर फोन चार्ज न रहने के कारण मैंने सोने की कोशिश की मगर नींद भी नहीं आ रही थी. बस किसी तरह घर पहुँच जाने के बाद ही नींद आती. एक जगह रुकने का भी सोचा था मगर घर आना ही बेस्ट लगा. तो रात के 10:30 बजे घर पहुँचा...


~Praphull





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