"हम मिलेंगे इसी जगह किसी और दिन"
तुम्हारे ये आखिर में कहे गए शब्द मेरे कानों में अबतक गूंजते है.. मिलने की आशा मुझे यहाँ फिरसे खींच लाई है.. मैं जहाँ तक देख पा रहा हूँ मुझे तुम नज़र नहीं आ रही हो.. क्या तुम्हें मैं याद भी हूँ? मुझे इसका उत्तर तो नहीं पता.. अभी मैं बैठा हूँ ठीक उसी जगह जहाँ तुमने मुझे आख़िरी बार गले लगाया था.. उसकी गर्माहट अब तक महसूस हो रही है.. आज थोड़ी ज्यादा ही.. ट्रेन की आवाज़ मेरे कानों तक पहुंच रही है और मुझे तुम्हारे आने की उम्मीद दे रही है.. ठीक एक साल पहले जब तुम और मैं अलग - अलग रास्तों की ओर निकलते हुए ठीक एक साल बाद मिलने का वादा किए थे, वो पल मेरे आँखों के सामने उतना ही साफ दिखाई दे रहा है..
ट्रेन यहाँ पहुंच चुकी है मगर मुझे तुम कहीं नहीं दिख रही.. हर अंजान व्यक्ति को देख मेरी उम्मीदें टूट रहीं है.. मैंने लगभग सबको ही देखा मगर तुम कहीं नहीं थी.. अब बस एक ट्रेन और बची है जो अब से तीन घंटे बाद है.. मैं तब तक तुम्हारी दी गई वो किताब फिर से पढ़ रहा हूँ.. मैंने पिछले एक साल में बस एक बार इस किताब को पढ़ा था.. वो भी ठीक तुम्हारे जाने के एक दिन बाद.. ये कहानी एक मजबूत महिला के बारे में है जो अपने पूरे परिवार को छोड़ अपना खुदका बिजनेस करने शहर आई है.. तुम्हें भी तो आत्मनिर्भर होना था.. ये कहानी मुझे तुम्हारी याद दिलाती है.. इसलिए मैंने इसे दुबारा नहीं पढ़ा.. क्योंकि फिर मैं एक साल इंतज़ार न कर पाता.. मैंने कहानी पुनः पढ़ी कुछ चीजें थोड़ी नई भी लगी तो कुछ बातें याद भी थी.. मगर मेरा ध्यान समय पे ज्यादा ही रहा.. अब ट्रेन के आने में बस आधे घंटे का समय बचा है.. थकावट और नींद से परेशान होकर मैंने एक कॉफी ऑर्डर की है..
एक साल पहले भी हमनें आखिरी बार साथ में कॉफी ही पी थी.. ट्रेन में किसी अनजान से मिलकर इतना करीब आ जाना हर बार नहीं होता.. मगर तुम्हारी बात अलग थी.. तुम्हारे भीतर मुझे कोमलता में भी एक कठोरता नजर आई थी.. दुनिया से लड़ने का जज़्बा और नियमों के खिलाफ़ जाने का हौसला भी.. तुमने मुझे अपने करीब आने का हक़ दिया.. जो शायद तुम्हारे जैसी सोच की महिलाएँ न करती.. हम साथ घूमे साथ रहे और साथ - साथ ही एक दूसरे को अलविदा भी कहा.. तुमने जब आखिरी बार मुझे गले लगाया तो तुम रो पड़ी थी.. शायद तुम्हें डर होगा की अगर हम फिर न मिले तो.. मैंने तुम्हारा नंबर लेने की भी कोशिश की मगर फ़ोन और मैसेज तुम्हें काफी बोरिंग बातें लगती है.. तुम सामान्य से काफी अलग हो.. अब मेरी सारी उम्मीदें बस एक ट्रेन पर टिकी है.. उसे आने में बस पाँच मिनट की देरी है.. मैंने कॉफी खत्म कर ली है और मैं प्लेटफार्म की तरफ़ बढ़ रहा हूँ.. मुझे ट्रेन की आवाज के साथ अपने तेज़ धड़कनों की आवाज भी सुनाई दे रही है.. ट्रेन अपने समय पर आई और उससे लोगों को उतरते देख मेरे अंदर भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा है..
जब मुझे तुम नज़र आई तब मेरे भीतर खुशी और मेरे आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे.. शायद तुमने मुझे देख लिया है.. तुम मेरी तरफ बढ़ रही हो और मैं तुम्हारी तरफ़.. मेरे हाथों में तुम्हारी किताब है.. और तुम्हारे हाथों में मेरी दी हुई किताब.. शायद ये वो पल है जिसका इंतज़ार मुझे एक वर्ष से था..
—Praphull🖤
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